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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...

इस यात्रा में



टूटे पत्ते की तरह, बिलकुल पीला था, तुम्हारा चेहरा ! बेहद क्लांत! थका-थका ! लगता था कि अब अधिक दूर तक चल पाना कठिन है।

पता नहीं, किसने कह दिया था-एक बार इसे भी करके देख क्यों नहीं लेते? जहां इतने उपचार किए हैं, एक यह भी सही। कई बार असंभव भी संभव हो जाते हैं...।

इसी असंभव को संभव करने के लिए हमारे हाथ-पांव अपने आप छटपटा रहे थे।

तुम यंत्रवत आगे चल रही थीं।

घर से जब निकल रहे थे, तो एक बार पूरा घर, तुमने मुड़कर देखा था। खिड़कियां, दरवाजे, उन पर टंगे भारी-भारी खादी के परदों पर तुम्हारी निष्प्राण-सी दृष्टि अटक गई थी।

“आप भी ऐसी बातों पर विश्वास करते हैं?” तुमने अविश्वास से मेरी ओर देखते हुए पूछा था।

“विश्वास तो नहीं करता, परंतु तुम्हारे लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं...।” मेरा स्वर लड़खड़ा आया था, "श्रद्धा से किया गया कोई भी काम व्यर्थ नहीं जाता। थोड़ी-सी आस्था रखो। हम जानते हैं, कुछ नहीं होगा, पर कुछ हो भी तो सकता है ! उम्मीद पर ही तो हम जी रहे हैं—मान क्यों नहीं लेतीं कि कुछ-न-कुछ ज़रूर होगा...।"

तुम मेरा तर्क सुनकर बच्चों की तरह, निरीह भाव से हंसने-सी लगी थीं, “सच, मैं जिंदगी से थक चुकी हूं ! अब मुझ पर रहम क्यों नहीं करते? चुपचाप चले जाने का भी तो एक सुख है। वही सुख मुझे चाहिए, बस्स !"

तुम्हारी सूनी-सूनी, रीती आंखों में वीतराग का अजब-सा भाव था !

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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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